#लाख दिये जला लो #अपनी गली में
पर
#रोशनी तो #मेरे आने से ही #होगी..
मुझे कहाँ मालूम था कि ...
सुख और उम्र की आपसमें बनती नहीं...
कड़ी महेनतके बाद सुखको घर ले आया..
तो उम्र नाराजगी जताकर चली गई..
माथे को चूम लूँ मैं और उनकी जुल्फ़े बिखर जाये,
इन लम्हों के इंतजार में कहीं जिंदगी न गुज़र जाये..
कौन कहता है कि ...
मुसाफिर ज़ख़्मी नहीं होते...
रास्ते गवाह हैं ...
बस कमबख्त गवाही नहीं देते...!
न जाने क्यों नजरें चूरा लेती है मुझसे ..
मैने तो कई बार कागज पर भी बना के देखी है आँखें उसकी ॥
अपनी आँखों के समंदर में उतर जाने दे,,
तेरा मुजरिम हूँ, मुझे डूब कर मर जाने दे,,
जख्म कितने दीये हैं तेरी चाहत ने मुझे,,
सोचता हूँ कुछ तुमसे कहूँ,मगर अब जाने दे