एक युद्ध में, एक सैनिक अपने जख्मी दोस्त को अपने क्षेत्र में लाने की कोशिश कर रहा था।
उसके कप्तान ने कहा, “ वो अभी किसी काम का नहीं! तुम्हारे दोस्त को मरना होगा।”
लेकिन सैनिक फिर भी जाता है और अपने दोस्त को वापिस लेके आता है।
दोस्त का मृत शरीर देखकर, कप्तान कहता है, “मैंने तुमसे कहा था की अब यह किसी काम का नहीं, वह मर चूका है।”
तभी वह सैनिक नम आखो से जवाब देता है, “नहीं सर, यह मेरे लिए बहोत कीमती है……
जब मैंने उसे ढूंडा तब मेरे दोस्त ने मुझे देखा, मुस्कुराया और उसने अपने अंतिम शब्द कहे :
“मै जानता था की तुम जरुर आओगे”………….
ऐसी कीमती, सच्ची और मजबूत दोस्ती आज हमें बहोत कम देखने मिलती है….जीवन में सच्चे दोस्त, जब आपको उसकी जरुरत होती है तब हमेशा आपके साथ रहते है। दोस्ती की कई महान कहानिया हमें इतिहास में दिखाई देती है। कई लोगो ने दोस्ती में अपनी जान तक गवई है। कहा जाता है माता-पिता के बाद अगर कोई किसी को पास से जान सकता है तो वो “दोस्त” ही है।
जीवन में कई बार हम ऐसी मुश्किलों में फसे होते है, जिस समय हम किसी से सहायता नहीं ले Read More
** चाणक्य ***
जब चाणक्य के बाप चणक के सिर को मगध के राजा नंद ने काट कर सूली पर लटका दिया था ,तो उस वक़्त चाणक्य की आयु 6 साल थी । तब उसने क्या किया ? इसे लिखने का प्रयास किया है ।
यह कौन है ,जो लड़ रहा है ।
खंबे के ऊपर चढ़ रहा है ।
नहीं दिखाई दे रही इसको काली रात ।
नहीं दिखती इसको होती बरसात ।
चणक का सिर ढका है ,इस मीनार पर ।
राजा नंद का आदेश है ,इस मीनार पर ।
ना चढ़े इस पर कोई , यह आदेश है मेरा ।
जो उतारे चणक शीश ,प्रबल शत्रु है ।
मेरा अरे 6 साल का यह बालक , फिर भी चढ़ता जाता है ।
राजाज्ञा का विरोध कर फिर भी बढ़ता जाता है ।
पकड़ो - पकड़ो शीश लेकर भाग रहा है ।
जंगल की ओर शीश लेकर भाग रहा है ।
गुम हो गया यह ,अब इसको ढूंढे कहां ?
दूर एक जगह कोटिल्य शपथ खा रहा है ।
नंद का सर्वनाश ही जीवन लक्ष्य है ।
बिस्तर त्यागा , और कच्चा अन्न हीं अब भक्ष्य है ।
रुक तक्षशिला की ओर कर , ज्ञान प्राप्ति जरूरी है ।
लक्ष्य को पाने की खातिर ,ज्ञान बहुत जरूरी है ।
गुरु बन तक्षशिला से , वापस मगध में आऊंगा
नंद का सर्वनाश कर ,पूरे भारत को बताऊंगा ।
शिष्यों की एक फौज खड़ी करनी है ।
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