एक युद्ध में, एक सैनिक अपने जख्मी दोस्त को अपने क्षेत्र में लाने की कोशिश कर रहा था।
उसके कप्तान ने कहा, “ वो अभी किसी काम का नहीं! तुम्हारे दोस्त को मरना होगा।”
लेकिन सैनिक फिर भी जाता है और अपने दोस्त को वापिस लेके आता है।
दोस्त का मृत शरीर देखकर, कप्तान कहता है, “मैंने तुमसे कहा था की अब यह किसी काम का नहीं, वह मर चूका है।”
तभी वह सैनिक नम आखो से जवाब देता है, “नहीं सर, यह मेरे लिए बहोत कीमती है……
जब मैंने उसे ढूंडा तब मेरे दोस्त ने मुझे देखा, मुस्कुराया और उसने अपने अंतिम शब्द कहे :
“मै जानता था की तुम जरुर आओगे”………….
ऐसी कीमती, सच्ची और मजबूत दोस्ती आज हमें बहोत कम देखने मिलती है….जीवन में सच्चे दोस्त, जब आपको उसकी जरुरत होती है तब हमेशा आपके साथ रहते है। दोस्ती की कई महान कहानिया हमें इतिहास में दिखाई देती है। कई लोगो ने दोस्ती में अपनी जान तक गवई है। कहा जाता है माता-पिता के बाद अगर कोई किसी को पास से जान सकता है तो वो “दोस्त” ही है।
जीवन में कई बार हम ऐसी मुश्किलों में फसे होते है, जिस समय हम किसी से सहायता नहीं ले Read More
ताल्लुकात बढ़ाने हैं तो
कुछ आदतें बुरी भी सीख ले ........
ऐब न हों..
तो लोग महफ़िलों में नहीं बुलाते...!
तप्त हृदय को , सरस स्नेह से ,
जो सहला दे , मित्र वही है।
रूखे मन को , सराबोर कर,
जो नहला दे , मित्र वही है।
प्रिय वियोग ,संतप्त चित्त को ,
जो बहला दे , मित्र वही है।
अश्रु बूँद की , एक झलक से ,
जो दहला दे , मित्र वही है।
सुदामा जी श्री कृष्णजी के बचपन के मित्र थे। दोनो संदीपन ऋषि के आश्रम में साथ-साथ पढ़ाई किये थे। सुदामा ब्राह्मन पुत्र थे,
और श्रीकृष्ण राजकुमार थे। दोनो आश्रम में एक ही साथ हकर गुरू से शिक्षा प्राप्त किये थे। दोनों में अटूट प्रेम था।पढ़ाई समाप्त कर दोनो अपने-अपने घर चले गयेथे।
एक बार पत्नी की इच्छा से सुदामा जी अपने मित्र श्रीकृष्ण से मिलने गये । श्रीकृष्ण उन दिनों द्वारिका के राजा थे।सुदामा जी की पत्नी सुशीला ने श्रीकृष्ण जी के भेंट स्वरूप कुछ टूटे चावल की पोटली (जो पड़ोस से माँगकर लाई थी ) बनाकर सुदामा जी को साथ दिया था। क्योंकि सुदामा जी अत्यन्त गरीब ब्राह्मन थे।सुदामा जी चलते-चलते जब थक गये , तो एक पेड़ के नीचे थकावट दूर करने के लिए थोड़ी देर सो गए। जागते ही विप्र सुदामा को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि द्वारिका नगरी आ गई है।क्योंकि प्रभु को सुदामा की दीन अवस्था देखकर दया आ गई , उन्हे लगा सुदामा जी इतनी दूर चल कर कैसे आ पायेंगे इसलिए नींद में ही द्वारिका पहुँचा दिये।
सुदामा जी द्वारपाल से पूछे कि क्या यही Read More