नारीरूप धरकर राधाजी की परीक्षा लेने आए थे नंदलाल
लीलाधारी भगवान कृष्ण की लीला अद्भुत है एक बार तो श्रीराधाजी की प्रेम परीक्षा लेने के लिए नारी बन उनके महल में पहुंच गए. श्रीगर्ग संहिता से सुंदर कृष्ण कथा
शाम को श्रीराधाजी अपने राजमंदिर के उपवन में सखियों संग टहल रही थीं तभी बागीचे के द्वार के पास मणिमंडप में एक अनजान पर बेहद सुंदर युवती को खड़े देखा. वह बेहद सुंदर थी. उसके चेहरे की चमक देख श्रीराधा की सभी सहेलियां अचरज से भर गईं.
श्रीराधा ने गले लगाकर स्वागत किया और पूछा- सुंदरी सखी तुम कौन हो, कहां रहती हो और यहां कैसे आना हुआ?
श्रीराधा ने कहा- तुम्हारा रूप तो दिव्य है. तुम्हारे शरीर की आकृति मेरे प्रियतम श्रीकृष्ण जैसी है. तुम तो मेरे ही यहां रह जाओ. मैं तुम्हारा वैसे ही ख्याल रखूंगी जैसे भौजाई, अपनी ननद का रखती है.
यह सुनकर युवती ने कहा- मेरा घर गोकुल के नंदनगर में नंदभवन के उत्तर में थोड़ी ही दूरी पर है. मेरा नाम गोपादेवी है. मैंने ललिता सखी से तुम्हारे रूप-गुण के बारे में बहुत सुन रखा था इसलिए तुम्हें देखने के लोभ से चली आई.
थोड़ी ही
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आँसु....एक सहज प्रार्थना है।तुम्हें अगर प्रभु का नाम सुनकर आँसु आते हैं, अगर तुम्हें उसके नाम को लेकर आँसु आते हैं तो जिन्दगी के यही पल सार्थक हैं, मंगलदायी हैं । ये पल प्रभु की कृपा हैं, ये पल उसकी करुणा का प्रसाद हैं ।
आँसुओं को रोकना मत, उनको बहने देना, उन आँसुओं में बहुत कुछ कूडा़ कर्कट तुम्हारा बह जाएगा । तुम पीछे तरोताजा अनुभव करोगे । जैसे कि कोई स्नान हो गया हो । आँखों से कंजूसी मत करना, बहने दो इन आँसुओं को, ये आँसु भीतर उठती किसी रसधार की खबर हैं । बस, इतना ख्याल रहे कि इन आँसुओं को अपनी मस्ती जरुर बना लेना । इन आँसुओं को अपना रस, अपना आनन्द बनाना है । उस प्रभु के लिए यही तुम्हारी सरल, सहज और निर्मल प्रार्थना है । अगर तुम खुलकर हृदय से उसके लिए रोना सीख लेते हो तो समझो इससे आगे कुछ और नहीं चाहिए, उसको रिझाने के लिए । क्योंकि रोते-रोते ही हँसना आ जाता है । उसके लिए रोना ही सबसे सरल और सबसे सहज साधन है, इसलिए उसको रिझाने के लिए रोओ ।दरअसल आँसुओं से बड़ी और कोई प्रार्थना नहीं है । इसलिए हृदय पूर्वक रोओ । आँसु निखारेंगे तुम्हें, बुहारेंगे तुम्हें, जो व्यर्थ है
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