कश्ती के मुसाफिर ने समन्दर नहीं देखा,
आँखों को देखा पर दिल मे उतर कर नहीं देखा,
पत्थर समझते है मेरे चाहने वाले मुझे,
हम तो मोम है किसी ने छूकर नहीं देखा।
ज़ुबानी.....इबादत ही काफ़ी नहीं....
ख़ुदा सुन रहा है....खयालात भी...
अगर छोडना चाहो तो वजह बता देना,
हम बे-वजह सजायें बहुत काट चुके है !!
मेरी ही नहीं सुनता, ये दिल💖..
तेरी तो, बाते हीं बहुत करता है...
बेचैनियाँ बाजारों में नहीं मिला करती, मेरे दोस्त,
इन्हें बाँटने वाला,कोई बहुत नजदीक का होता हैं।
मेरे यार ने तोहफे में घड़ी तो दी है...
*मगर कभी वक़्त नही दिया.!!